संघ और उसका राज्यक्षेत्र || The Union and its territory

 

 संघ और उसका राज्यक्षेत्र (अनुच्छेद 1-4)

राज्यों के पुनर्गठन और महत्वपूर्ण आयोगों पर आधारित नोट्स



संविधान का **भाग 1** भारत की संप्रभुता और उसकी क्षेत्रीय अखंडता को परिभाषित करता है। यह सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है जो संसद को राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति देता है।

1. भाग 1 के मुख्य अनुच्छेद (Articles 1-4)

ये चार अनुच्छेद भारतीय संघ के निर्माण और उसकी सीमाओं को नियंत्रित करते हैं:

- **अनुच्छेद-1 (Article 1):** संघ का नाम और क्षेत्र। इंडिया यानी भारत को **'राज्यों का संघ (Union)'** बनाया गया है। यह 'विनाशकारी राज्यों का अविनाशी संघ' है।
- **अनुच्छेद-2 (Article 2):** नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना।
- **अनुच्छेद-3 (Article 3):** नए राज्यों का गठन, वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन। संसद यह परिवर्तन राज्यों की सहमति के बिना कर सकती है।
- **अनुच्छेद-4 (Article 4):** अनुच्छेद 2 और 3 के तहत बनाए गए कानून **अनुच्छेद 368** के तहत संविधान संशोधन नहीं माने जाते हैं।

2. राज्यों के पुनर्गठन के आयोग (Reorganization Commissions)

भारत में राज्यों का पुनर्गठन एक लंबी प्रक्रिया थी जो भाषा के आधार पर मांग के बाद शुरू हुई:

🔴 एस.के. धर आयोग (जून 1948)

- आयोग ने भाषाई कारकों के बजाय **प्रशासनिक सुविधा** के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का पुनर्गठन सुझाया।

🔴 जेवीपी समिति (JVP Committee) (दिसंबर 1948)

- सदस्य: जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया।
- समिति ने भी राज्यों के पुनर्गठन के आधार के रूप में **भाषा को अस्वीकार** कर दिया।
- अक्टूबर 1953 में पोड्टि श्रीरामुलु के अनशन के कारण **आंध्र प्रदेश** को पहला भाषाई राज्य बनाना पड़ा।

3. फजल अली आयोग और पुनर्गठन अधिनियम

भाषाई राज्यों की मांग को स्वीकार करने के लिए यह निर्णायक कदम था:

- **फजल अली आयोग (1953):** इस आयोग ने राज्यों के पुनर्गठन के आधार के रूप में **भाषा को स्वीकार** कर लिया, लेकिन **'एक भाषा-एक राज्य'** के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया।
- सदस्य: फजल अली (अध्यक्ष), के.एम. पणिक्कर और एच.एन. कुंजरू।
- **राज्य पुनर्गठन अधिनियम (1956):** **सातवें संविधान संशोधन अधिनियम (1956)** के तहत 1 नवंबर, 1956 को **14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश** बनाए गए।

✅ **याद रखें:** **अनुच्छेद 3** संसद को बिना राज्यों की अनुमति के भी उनकी सीमाएं बदलने की शक्ति देता है।


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